ऐसे ही अनर्गल और आधारहीन तर्कों के आधार पर अभिजन बुद्धिजीवी मनुष्य की आभासी स्वतंत्रता को वास्तविक सिद्ध करने में सफल हो जाते हैं.
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उससे आगे यदि वे कामना करें तो यह आधी-अधूरी स्वतंत्रता भी, जिसे इससे पहले हमने आभासी स्वतंत्रता कहा है, खतरे में पड़ सकती है.
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लेकिन यह भी कटु सत्य है कि असमानता-ग्रस्त समाजों में, जहां निर्णय ऊपर से थोपे जाते हैं, आम आदमी के हिस्से महज आभासी स्वतंत्रता ही आती है-या यूं कहो कि स्वतंत्रता का कंकाल, अथवा पुरानी किस्सागोइयों में बंद तोता, जिसकी जान किसी राक्षस अथवा चालाक जादूगरनी की मुट्ठी में होती थी.